फरिश्तों से जब पुछा, तो जाना तेरा पता...
तू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
आब ओ हवा से बातें सारी कर ली..
तू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
झुकी जब भी नजर, तो इब्बादत कर ली..
तू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
मेरी हर ख्वाइश का गवाह तू है..
तू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
घटा में बसी सारी बूंदों का पता तू है..
तू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
मेरे गुलशन में फैली ये महक तू है..
तू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
इल्म न था तेरी परछाई का..
तू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
आज, जब निकला तुझे पाने.
तब
फरिश्तों से पुछा,.... तो जाना तेरा पता..
एए खुदा..
तू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
Zarre zarre mein usi ka noor hai,
ReplyDeletekhud mein hi dekho, wo kahaan humse duur hai...
bahut pyaara lekhan hai.
Cheers,
Blasphemous Aesthete
@Blasphemous Aesthete : thanks bro... :)
ReplyDeleteतू रहकर भी मेरे भीतर, इतना अन्जाना सा क्यूँ है...
ReplyDeletebahut accha
बहुत सुंदर भार्गव भाई....:))
ReplyDeleteirfan
@ kanu.. thanks for visiting... :)
ReplyDelete@ irfanbhai,... always a pleasure to read ur comment.. thanks :)
beautifully written !!
ReplyDeleteLoved it.. Nice expressions..
Regards
@ jyoti... welcome jyotiji.. thanks for your comment..,.. yup, thats fact yet we all so unaware...
ReplyDelete@ sanjay bhaskar... thank you for your visit and words.... :)
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